श्रीराम रक्षा स्त्रोत का पदानुवाद
श्रीरामरक्षा चालीसा
दोहा
धरूँ ध्यान उस रूप का] जिनके कर धनु बाण ।
पद्मासन मुद्रा अनुप] धारे पित परिधान ।।
होड़ किये नव कमल सम] आलोकित है नेत्र ।
मिले पद्म से सीय मुख] विराजे वाम क्षेत्र ।।
बाहु आजानु देव के] मेघश्याम सम देह ।
जटायुक्त उस रूप पर] करूं सदा मैं नेह।।
चौपाई
श्री रघुनाथ कथा अति प्यारी । जो सत सहस्त्र है विस्तारी
वर्ण वर्ण है पावनकारी । महा पाप के नाशन हारी ।1।
नील श्याम तन कमल सरीखे । नयन कमल सम है प्रभु जी के
जटा मुकुट माथा अति शोभित। संग लखन सीता मन लोभित ।2।
जन्म रहित प्रगटे जग पालक । सकल चराचर के उद्धारक
हाथ खडग धनु सायक धरता । दैत्यों के वह तो संहरता ।3।
राम कवच का जो पाठ करे । प्रभु उनके सब त्रय ताप हरे
कर रक्षा मम सिर की राघव । दशरथ नंदन ललाट राखव ।4।
कौशल्या नंदन नैनो की । विश्वामित्र शिष्य कर्णो की
करे घ्राण रक्षा मख रक्षक । सुमित्रा दुलारे मुख रक्षक ।5।
विद्यानिधि प्रभु जीभ बचावें । भरत पूज्य प्रभु कंठ सवारें
कंधा को दिव्या युध धारक । भुज रक्षक शिव चाप विदारक ।6।
सीता पति मम हस्त बचावें । परशु विजेता हृदय सवारें
मध्य भाग को खर वध कर्त्ता । नाभी जांबवान शुभ भर्त्ता ।7।
सुग्रीव स्वामी कमर बचावें । हनुमंत नाथ अस्थि सवारें
ऊरू रक्षक राक्षस हंता । जो रघु श्रेष्ठ परम प्रिय कंता ।8।
जानु बचावें सेतुकृत कंता । जंघा रक्षक रावण हंता
चरण विभीषण के श्री दाता । तन रक्षक श्रीराम विधाता ।9।
पढ़े भक्ति श्रद्धा से जो नर । इस रचना को हृदय राम धर
पुत्र आयु सुख को वह पाते । विनयशील विजयी हो जाते ।10।
जो प्राणी छद्म वेष धर कर । विचरे नभ पाताल धरा पर
बदन ढके जो राम नाम से । बाल न बांका होय काम से । ।11।
राम राम प्रभु श्री राम हरे । राम भक्त जो नित जाप करे
पापों में कभी नही पड़ते । भोग मोक्ष को निश्चय गहते ।12।
राम नाम रक्षित परम कवच । सकल विश्व में है विजय करत
जो नर इसको कंठस्थ करे । रिद्धी सिद्धी निज भाग भरे ।13।
कवच वज्रपंजर नामित यह । करे याद जो इसे राम कह
उसकी आज्ञा टरत न टारत । सदा सदा जय मंगल धारत ।14।
शिव शंकर जब सपने दीन्हा । बुध कौशिक आज्ञा सिर लीन्हा
उठकर कौशिक शिव अनुसारा । रचे स्तोत्र अति पावन प्यारा ।15।
बाग कल्प तरु सम सुख करता । सकल विघ्न कष्टों के हरता
त्रिभुवन के अभिराम जगत पति । मेरे वह श्री राम रमा पति ।16।
अति सुकुमार तरुण बलवाना । पुण्डरीक सम नयन लिलामा
ऋषि मुनिन सम वह तो रहते । चर्म श्याम मृग धारण करते ।17।
कंद मूल के जो आहारी । हैं तपसी अरु कानन चारी
राम लखन दशरथ सुत प्यारे । बंधु दोउ मेरे रखवारे ।18।
रघुकुल श्रेष्ठ महाबल धारी। सकल जीव के आश्रय कारी
हे धनु धारी राक्षस कुल हंता । कर रक्षा मेरे प्रिय कंता ।।19।।
खिचे चाप बाण धरे हाथा । अक्षय तरकश ले रघुनाथा
संग लखन तरकस संधाने । चलें साथ मेरे अगवाने ।।20।।
हाथ बाण खडग नव्हारी । कवची प्रभु भगत संगवारी
राम लखन किशोर मय दोऊ । चलें नाथ मम रक्षक होऊ ।।21।।
राम राम श्री राम दशरथी । शुर लक्ष्मणानुचर महाबली
हे काकुत्स्थ पूर्ण पुरुषोत्तम । हे कौशल्या नंद रघुत्तम ।।22।
यज्ञ वेद पुराण के स्वामी । हे पुरुषोत्तम अंतरयामी
जानकी नाथ श्रीयुत रामा । परम पराक्रम अनंत नामा ।।23।।
इन नामो को जो भक्त वरे । श्रद्धा सहित नित्य पाठ करे
अश्वमेघ से अधि फल पाता । करे न संशय कहे विधाता ।।24।।
दूर्वा सम श्याम मनोहारी । कमल नयन पीताम्बरधारी
प्रभु के दिव्य नाम जो जापे । सृष्टि चक्र उसको ना व्यापे ।।25।।
हे सीता पति जनक जमाता । रघु कुल-नंदन लछिमन भ्राता
करूणा सागर सगुण निधाना । धर्म धुरन्धर परम सियाना ।।26 क ।।
विप्र भक्त राजेश्वर रामा। शांत मूर्ति अविचल परधामा
सकल लोक में हो अभिरामा । दशरथ नंदन हे प्रभु श्यामा ।।26 ख ।
रामभद्र रघुनायक रामा । विधि स्वरूप हे प्रभु सुखधामा
हे काकुत्स्थ वंश कुल नंदन । कोटि कोटि तुहरे अभिनंदन ।।27।
राम राम रघुनंदन रामा । भरताग्रज प्रभु श्री सुख धामा
हे रण कर्कश प्रभु श्री रामा । शरणागत वत्सल विश्रामा ।28।
राम चरण का नित ध्यान धरूं । राम राम का गुण गान करूं
वचन कर्म अरु वाणी सहिता । करूं नमन राम चरण सप्रिता ।29।
राम मातु पितु भ्राता मेरे । स्वामी प्रियतम सखा घनेरे
दयावंत प्रभु सब कुछ मेरे । कोई दूजा सिवा न तेरे ।30।
जनक दुलारी वाम विराजे । लखन लाल है दक्षिण साजे
सम्मुख बैठे मारुति नंदन । उस प्रभु को कोटि कोटि वंदन ।31।
त्रिभुवन सुंदर हे कमल नयन । हे धीर वीर रघुवंश अयन
शरण गहूं मैं करूणा सागर । सकल गुणों में तुम तो आगर ।32।
इंद्री जेता ज्ञान निधाना । मन जेता गति पवन समाना
कपि सिरमौर अंजनी नंदन । राम दूत प्रभु तुमको वंदन ।33।
बैठ डाल कविता जो रहता । मधुर नाम कुंजन जो करता
कोयल सम वाल्मीकी कविवर । वंदन है माथ चरण रज धर ।।34।।
सकल आपदा के तुम हरता । सकल संपदा के प्रभु भरता
हे जन जन के प्रिय रघुनंदन । कोटि कोटि तुमको है वंदन ।।35।
राम नाम का जो जाप करे । सुख सम्पति अरु शांति वरे
राम नाम की गर्जन सुनकर । भगे भयावह यम के अनुचर ।36।
राम राजमणि हे जय कारी । श्री पति जाऊं मैं बलिहारी
हे प्रभु दैत्य वंष के नाषक । नमन करूं मैं हो षरणागत ।37क।
नहीं राम सम आश्रय दाता । शरणागत वत्सल विख्याता
हो लय लीन राम नाम धरूं । करें उद्धार गोहार करूं ।37 ख ।
बिष्णु सहस्त्र नाम सम रामा । कहे शिवा सन संभु बखाना
राम नाम में मैं तो रमता । राम राम का सुमरन करता ।।38।।
दोहा
राम स्त्रोत यह राम का] पढ़ लो ले विश्वास ।
पूर्ण करेंगे राम प्रभु] तेरे सारे आस ।।
बुध कौशिक इसको रचे] पाकर शिव आदेश ।
छंदबद्ध इसको किये] रमेश दास ^रमेश* ।।
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